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The post conquest aftermath

The post conquest aftermath

Monday, December 10, 2012

भ्रम के भूत

एक सोच, जिसको मैं मैं बुलाता हूँ,
चल पड़ा एक रथ की सवारी पर,
खीचा विचारों के घोड़ों ने,
पहिया चले समय का।

चलते चलते, मिला सैकड़ो ख्यालों से,
कुछ साथ चलते, तो कुछ धोका देते,
कुछ अपने सफ़र में मस्त।

रास्ते बदल दिए,
ताकि मैं खो न जाऊ,
ताकि मैं मंजिल तक पहुच जाऊ,
शायद मैं संभल जाऊ।

चौराहे पर रुकता, और फिर चलता,
मन के नक्षों ने किया तैय सफ़र।।